नंदन
कर्म
बंध में संसार वर्द्धन होता है
कर्म
बंध राग द्वेष की प्रवृत्ति, परिणाम है,
यह
अर्द्ध सत्य है,
कर्म
बंध ऐसा भी होता है कि धर्म वर्द्धन हो |
कर्म
बंध ऐसा भी होता है कि जिसके मूल में,
राग
द्वेष नहीं,
श्रद्धा,
संयम, विश्वकल्याण की अनुभूति हो |
जो
बांधेगा वही भोगेगा, जो करेगा वही पायेगा,
यह
अर्द्ध सत्य है,
पूर्ण
सत्य है –
एक
बांधेगा, सब भोगेंगे,
एक
करेगा, सब पायेंगे |
यह
सत्य जहां प्रकट होता है, उसे कहते हैं,
तीर्थंकर
नाम कर्म बंध
एक
जीव तीर्थंकर नाम कर्म का बंध करता है ,
असंख्य
जीव तीर्थ का फल प्राप्त करते हैं,
नयसार
के जीवन में प्रभु दर्शन हुए,
मरीचि
के भव में प्रभु बनने का सपना जन्मा,
नंदन
ने प्रभु दर्शन स्वप्न को सत्य करने के लिये
बीस
मार्गों से साधना की |
एक
ही सपना, एक ही अरमान
एक
ही लक्ष्य, एक ही ध्येय
कोई
न रहे पापी जगत में सब हो जाएँ धर्म रसज्ञ |
सुपार्श्व
अहो
भाव जीवन का परम सौभाग्यहै ,
अहम्
भाव दुर्भाग्य है
अहोभाव
वर्द्धमान समर्पित
सुपार्श्व
का जीवन आलोकित |
अनूठा
है जीवन सुपार्श्व का,
वर्द्धमान
के आगमन का
इंतज़ार,
त्रिशला-सिद्धार्थ से अधिक सुपार्श्व को |
मेरे
आकाश का एक ही सूर्य, एक ही चन्द्र, वर्द्धमान
इसी
मंगल समर्पण का परिणाम
बिना
सन्यासी वेश के प्रभु न्यासी सुपार्श्व |
जो
प्रभु न्यासी होते वे तीर्थंकर बन ही जाते |
आत्म
समं करोमि तीर्थंकरः |
त्रिशला
वासना
कामना से जन्मे सपने
टूटते
हैं, तोड़ते हैं,
रोते
हैं रुलाते हैं,
प्रभु
से जन्मे सपने
प्रभु
जननी बनाते हैं |
विश्व
भविष्य का आलेख
सर्वप्रथम
निहारती त्रिशला |
अनुभूति
होती जगती, जगत्, प्रभु जननी के स्वप्न
विश्व
को शुभंभवतु, मंगलंभवतु का
अविराम
संगीत सुनाते |
माँ
का कण-कण, क्षण-क्षण प्रभु मय
काया
की देहरी प्रभु मन्दिर बनती
यह
सौभाग्य केवल, केवल मातृत्व को ही प्राप्त है |