रविवार, 8 दिसंबर 2013

जीवन में मधुरता का समावेश करना चाहिए।

एक बार समुद्र ने सरिता से कहा कि तुम मुझमें कब तक मिलती रहोगी तो नदी ने  समुद्र से कहा  कि जब तक तुम्हारे अंदर मिठास न आ जाए। यह बात बुधवार को दिगंबर जैन मंदिर में धर्मसभा को संबोधित करते हुए आर्यिका स्वस्ति भूषण माताजी ने कही। उन्होंने कहा कि समुद्र को मीठा बनाने का अटूट संकल्प, जो नदी ने लिया, उसी प्रकार से श्रावक को भी समुद्र रूपी जीवन में रहते हुए संतों का समागम करना चाहिए। अपने जीवन में मधुरता का समावेश करना चाहिए।  

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